🙏🏻 हर हर महादेव🙏🏻
🌞~ आज का वैदिक पंचांग ~🌞
🌤️ दिनांक – 16 जनवरी 2025
🌤️ दिन – गुरूवार
🌤️ विक्रम संवत – 2081
🌤️ शक संवत -1946
🌤️ अयन – उत्तरायण
🌤️ ऋतु – शिशिर ॠतु
🌤️ मास – माघ
🌤️ पक्ष – कृष्ण
🌤️ तिथि – तृतीया 17 जनवरी प्रातः 04:06 तक तत्पश्चात चतुर्थी
🌤️ नक्षत्र – अश्लेशा सुबह 11:16 तक तत्पश्चात मघा
🌤️ योग – आयुष्मान 16 जनवरी रात्रि 01:06 तक तत्पश्चात सौभाग्य
🌤️ राहुकाल – दोपहर 02:11 से शाम 03:34 तक
🌤️ सूर्योदय 07:19
🌤️ सूर्यास्त – 06:17
👉 दिशाशूल – दक्षिण दिशा मे
🚩 *व्रत पर्व विवरण –
💥 विशेष- तृतीया को पर्वल खाना शत्रुओं की वृद्धि करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🌷 माघ कृष्ण चतुर्थी / संकष्टी चतुर्थी / संकट चौथ 🌷
➡ 17 जनवरी 2025 शुक्रवार को माघ कृष्ण चतुर्थी, संकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी का त्यौहार है। इस चतुर्थी को ‘माघी कृष्ण चतुर्थी’, ‘तिलचौथ’, ‘वक्रतुण्डी चतुर्थी’ भी कहा जाता है।
🙏🏻 इस दिन गणेश भगवान तथा संकट माता की पूजा का विधान है। संकष्ट का अर्थ है ‘कष्ट या विपत्ति’, ‘कष्ट’ का अर्थ है ‘क्लेश’, सम् उसके आधिक्य का द्योतक है। आज किसी भी प्रकार के संकट, कष्ट का निवारण संभव है। आज के दिन व्रत रखा जाता है। इस व्रत का आरम्भ ‘ गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये ‘ – इस प्रकार संकल्प करके करें । सायंकालमें गणेशजी का और चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन करके अर्घ्य दें।
‘गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धि प्रदायक।
संकष्टहर में देव गृहाणर्धं नमोस्तुते।
कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तु सम्पूजित विधूदये।
क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहार्धं नमोस्तुते।’
🙏🏻 नारदपुराण, पूर्वभाग अध्याय 113 में संकष्टीचतुर्थी व्रत का वर्णन इस प्रकार मिलता है।
माघकृष्णचतुर्थ्यां तु संकष्टव्रतमुच्यते । तत्रोपवासं संकल्प्य व्रती नियमपूर्वकम् ।। ११३-७२ ।।
चंद्रोदयमभिव्याप्य तिष्ठेत्प्रयतमानसः । ततश्चंद्रोदये प्राप्ते मृन्मयं गणनायकम् ।। ११३-७३ ।।
विधाय विन्यसेत्पीठे सायुधं च सवाहनम् । उपचारैः षोडशभिः समभ्यर्च्य विधानतः ।। ११३-७४ ।।
मोदकं चापि नैवेद्यं सगुडं तिलकुट्टकम् । ततोऽर्घ्यं ताम्रजे पात्रे रक्तचंदनमिश्रितम् ।। ११३-७५ ।।
सकुशं च सदूर्वं च पुष्पाक्षतसमन्वितम् । सशमीपत्रदधि च कृत्वा चंद्राय दापयेत् ।। ११३-७६ ।।
गगनार्णवमाणिक्य चंद्र दाक्षायणीपते । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक ।। ११३-७७ ।।
एवं दत्त्वा गणेशाय दिव्यार्घ्यं पापनाशनम् । शक्त्या संभोज्य विप्राग्र्यान्स्वयं भुंजीत चाज्ञया ।। ११३-७८ ।।
एवं कृत्वा व्रतं विप्र संकष्टाख्यं शूभावहम् । समृद्धो धनधान्यैः स्यान्न च संकष्टमाप्नुयात् ।। ११३-७९ ।।
🙏🏻 माघ कृष्ण चतुर्थी को ‘संकष्टवव्रत’ बतलाया जाता है। उसमें उपवास का संकल्प लेकर व्रती सबेरे से चंद्रोदयकाल तक नियमपूर्वक रहे। मन को काबू में रखे। चंद्रोदय होने पर मिट्टी की गणेशमूर्ति बनाकर उसे पीढ़े पर स्थापित करे। गणेशजी के साथ उनके आयुध और वाहन भी होने चाहिए। मिटटी में गणेशजी की स्थापना करके षोडशोपचार से विधिपूर्वक उनका पूजन करें । फिर मोदक तथा गुड़ से बने हुए तिल के लडडू का नैवेद्य अर्पण करें।
तत्पश्चात् तांबे के पात्र में लाल चन्दन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमीपत्र, दधि और जल एकत्र करके निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करते हुए उन्हें चन्द्रमा को अर्घ्य दें –
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥
‘गगन रूपी समुद्र के माणिक्य, दक्ष कन्या रोहिणी के प्रियतम और गणेश के प्रतिरूप चन्द्रमा! आप मेरा दिया हुआ यह अर्घ्य स्वीकार कीजिए।’
इस प्रकार गणेश जी को यह दिव्य तथा पापनाशन अर्घ्य देकर यथाशक्ति उत्तम ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्च्यात स्वयं भी उनकी आज्ञा लेकर भोजन करें। ब्रह्मन ! इस प्रकार कल्याणकारी ‘संकष्टवव्रत’ का पालन करके मनुष्य धन-धान्य से संपन्न होता है। वह कभी कष्ट में नहीं पड़ता।
🙏🏻 लक्ष्मीनारायणसंहिता में भी कुछ इसी प्रकार वर्णन मिलता है ।
माघकृष्णचतुर्थ्यां तु संकष्टहारकं व्रतम् ।
उपवासं प्रकुर्वीत वीक्ष्य चन्द्रोदयं ततः ।। १२८ ।।
मृदा कृत्वा गणेशं सायुधं सवाहनं शुभम् ।
पीठे न्यस्य च तं षोडशोपचारैः प्रपूजयेत् ।। १२९ ।।
मोदकाँस्तिलचूर्णं च सशर्करं निवेदयेत् ।
अर्घ्यं दद्यात्ताम्रपात्रे रक्तचन्दनमिश्रितम् ।। १३० ।।
कुशान् दूर्वाः कुसुमान्यक्षतान् शमीदलान् दधि ।
दद्यादर्घ्यं ततो विसर्जनं कुर्यादथ व्रती ।। १३१ ।।
भोजयेद् भूसुरान् साधून् साध्वीश्च बालबालिकाः ।
व्रती च पारणां कुर्याद् दद्याद्दानानि भावतः ।। १३२ ।।
एवं कृत्वा व्रतं स्मृद्धः संकटं नैव चाप्नुयात् ।
धनधान्यसुतापुत्रप्रपौत्रादियुतो भवेत् ।। १३३ ।।
➡ भविष्यपुराण में भी इस व्रत का वर्णन मिलता है ।
👉🏻 आज के दिन क्या करें
➡ १. गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ अत्यन्त शुभकारी होगा ।
➡ २. गणेश भगवान को दूध (कच्चा), पंचामृत, गंगाजल से स्नान कराकर, पुष्प, वस्त्र आदि समर्पित करके तिल तथा गुड़ के लड्डू, दूर्वा का भोग जरूर लगायें। लड्डू की संख्या 11 या 21 रखें। गणेश जी को मोदक (लड्डू), दूर्वा घास तथा लाल रंग के पुष्प अति प्रिय हैं । गणेश अथर्वशीर्ष में कहा गया है “यो दूर्वांकुरैंर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति” अर्थात जो दूर्वांकुर के द्वारा भगवान गणपति का पूजन करता है वह कुबेर के समान हो जाता है। “यो मोदकसहस्रेण यजति स वाञ्छित फलमवाप्रोति” अर्थात जो सहस्र (हजार) लड्डुओं (मोदकों) द्वारा पूजन करता है, वह वांछित फल को प्राप्त करता है।
➡ ३. आज गणपति के 12 नाम या 21 नाम या 101 नाम से पूजा करें ।
➡ ४. शिवपुराण के अनुसार “महागणपतेः पूजा चतुर्थ्यां कृष्णपक्ष के। पक्षपापक्षयकरी पक्षभोगफलप्रदा ॥ “ अर्थात प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को की हुई महागणपति की पूजा एक पक्ष के पापों का नाश करनेवाली और एक पक्ष तक उत्तम भोगरूपी फल देनेवाली होती है ।
➡ ५. किसी भी समस्या के समाधान के लिए आज संकट नाशन गणेश स्तोत्र के 11 पाठ करें।
गुरु वशिष्ठ जी ने सूर्यवंश का पुरोहित बनना क्यों स्वीकार किया था

वशिष्ठ का अर्थ है जिसने अपने इष्टदेव को वश में कर लिया है। वशिष्ठ ब्रह्मा के हृदय से उत्पन्न हुए थे। ब्रह्मज्ञान प्राप्त किया। नैष्ठिक ब्रह्मचारी। पिता की कुदृष्टि से कुंठित दिग्भ्रमित संध्या को गुरुवत ज्ञान दिया और अरुंधती रूप में पुनर्जन्म होने पर पिता की आज्ञा से अरुंधती से विवाह भी किया।
आज भी अरुंधती सती शिरोमणि है। सप्तर्षि मंडल में केवल वशिष्ठ अरुंधती ही दम्पति रूप में सम्मिलित हैं। विवाह उपरांत दम्पति सुदीर्घ दाम्पत्य के लिए इनका दर्शन बहुत शुभ माना जाता है। वशिष्ठ ब्रह्मज्ञानी और समर्थऋषि त्रिकालदर्शी और गायत्री के उपदेष्टा हैं। वे सृजन पालन और संहार की शक्ति के सूत्रधार और महाप्रकृति की निरंकुश शक्ति संचार को कीलित करने वाले तीन ऋषियों में एक हैं ।उत्कीलन मंत्रों में ब्रह्म वशिष्ठ विश्वामित्र का उल्लेख आवश्यक है।अर्जित ब्रह्मज्ञानी होते हुए शक्ति साधकों में सर्वोच्च है। वशिष्ठ परम वैराग्य और निवृत्ति मार्ग के अधिष्ठाता हैं।
विश्वामित्र जी से दीर्घ अवधि तक चली वैमनस्यता और प्रतिस्पर्धा होते हुए भी यह विश्वामित्र के उपलब्धियों के प्रशंसक और निर्वैर रहे। राजनीति युद्धनीति और प्रशासन सबमें वशिष्ठ ऋषि अग्रगण्य थे।
महाराज अज के रानी इंदुमती के निधन पर महाराज अज द्वारा शरीर त्याग के समय दशरथ छोटे बालक ही थे उस समय बालक दशरथ का लालन-पालन शिक्षा-दीक्षा के साथ राज्य शासन का सुचारू सुरक्षित संचालन ऋषि वशिष्ठ ने ही किया। ऐसे समर्थ ऋषि से जब पिता ब्रह्माजी ने सूर्यवंश का पुरोहित बनने का प्रस्ताव रखा तो वशिष्ठ ने इनकार कर दिया।
यह पुरोहित कर्म सनातनी परम्परा में विशिष्ट पहचान है। हर परिवार का जिस तरह एक गोत्र होता था उसी से सम्बंधित एक पुरोहित परिवार भी होता था जो यजमान के भौतिक दैविक आधिदैविक आवश्यकता के अनुसार हित साधन करता था। वह परिवार का अध्यात्मिक मार्गदर्शन करता था। पुरोहित परिवार के लिए आवश्यक था। पाण्डवों के पुरोहित धौम्य को कौन भूल सकता है। पाण्डवों के सुख दुःख में राज्य और वनवास में भी धौम्य पाण्डवों के साथ रहे नैतिक राजनीतिक अध्यात्मिक और यज्ञादि कर्म द्वारा सदैव मार्गदर्शन करते रहे।
जो यजमान के हितों का पहले से पता लगा लें और उसके निमित्त उपचार करें वहीं पुरोहित है।पर जो ऋषि सृष्टि को दिशा देने की क्षमता रखता है वह भला एक परिवार वह चाहे सूर्यवंश ही क्यों न हो भला क्यों जुड़े?
वशिष्ठ ऋषि ने इसीलिए ब्रह्मा से अनिच्छा प्रकट की।परन्तु तब ब्रह्मा ने समझाया पुत्र जिस ब्रह्म को हम अन्तिम सत मानते हैं सारे ब्रह्माण्ड जिनके एक अंश मात्र में स्थित हैं वह निर्गुण निराकार अपने अद्भुत सगुण साकार रूप में इसी सूर्य वंश में अवतरित होंगें।
वह नित्य स्वतंत्र परम सत्ता अपनी इच्छा से अवतरित हो सृष्टि में मर्यादा के मापदंड स्थापित करेगी।
उस ब्रह्म अवतार के आने का निमित्त,उनके पुंसवन नामकरण उपनयन शिक्षा -दीक्षा तुम्हारे देखरेख में ही सम्पन्न होगी। हे पुत्र अनेक सहस्र जन्मों के तप के बाद जो सहज सानिध्य स्वप्न में भी प्राप्त नहीं होता वह दीर्घ काल तक स्वत:तुम्हे प्राप्त होगी। ब्रह्मराम का साहचर्य सानिध्य अमूल्य होगा। अतः हे पुत्र यह पौरोहित्य कर्म स्वीकार कर लो इससे तुम्हारी तपस्या पूर्ण हो जायेगी।
तब वशिष्ठ ऋषि ने ब्रह्माजी की आज्ञा स्वीकार की! रघुकुल के पुरोहित बन गये।
वशिष्ठ जी ने गृहस्थाश्रम की पालना करते हुए सृष्टि वर्धन, रक्षा, यज्ञ आदि से संसार को दिशा बोध दिया।
उन्होंने ही दशरथ को पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया, श्री रामजी को जातकर्म चौल, यज्ञोपवीत विवाह कराया और राम की राज्याभिषेक की पूरी व्यवस्था इन्हीं के द्वारा हुई।
जब इनके पिता ब्रह्मा जी ने इन्हें मृत्युलोक में जाकर सृष्टि का विस्तार करने तथा सूर्यवंश का पौरोहित्य कर्म करने की आज्ञा दी, तब इन्होंने पौरोहित्य कर्म को अत्यन्त निन्दित मानकर उसे करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की। ब्रह्मा जी ने इनसे कहा- ‘इसी वंश में आगे चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अवतार ग्रहण करेंगे और यह पौरोहित्य कर्म ही तुम्हारी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगा।’ फिर इन्होंने इस धराधाम पर मानव-शरीर में आना स्वीकार किया।
निमि राजा के विवाह के बाद वसिष्ठ ने सूर्य वंश की दूसरी शाखाओं का पुरोहित कर्म छोड़कर केवल इक्ष्वाकु वंश के राजगुरु पुरोहित के रूप में कार्य किया।
कथा- शुकदेवजी मुनि कैसे बने
ज्ञान, सदाचार और वैराग्य के मूर्तिमान रूप शुकदेवजी महर्षि वेदव्यास के तपस्याजनित पुत्र हैं । संसार में किस प्रकार की संतान की सृष्टि करनी चाहिए, यह बताने के लिए ही व्यासजी ने घोर तप किया वरना महाभारत की कथा साक्षी है कि उनकी दृष्टिमात्र से ही कई महापुरुषों का जन्म हुआ था ।
महर्षि वेदव्यास जाबलि मुनि की कन्या वटिका से विवाह कर वन में आश्रम बनाकर रहने लगे । वृद्धावस्था में व्यासजी को पुत्र की इच्छा हुई । व्यासजी ने भगवान गौरीशंकर की विहारस्थली में घोर तपस्या की । भगवान शंकर के प्रसन्न होने पर व्यासजी ने कहा-‘भगवन् ! समाधि में जो आनन्द आप पाते हैं, उसी आनन्द को जगत को देने के लिए आप मेरे घर में पुत्र रूप में पधारिए । पृथ्वी, जल, वायु और आकाश की भांति धैर्यशाली तथा तेजस्वी पुत्र मुझे प्राप्त हो ।’ व्यासजी की इच्छा भगवान शंकर ने स्वीकार कर ली ।
शिवकृपा से व्यासपत्नी वाटिकाजी गर्भवती हुईं । शुक्लपक्ष के चन्द्रमा के समान उनका गर्भ बढ़ने लगा और गर्भ बढ़ते-बढ़ते बारह वर्ष बीत गए परन्तु प्रसव नहीं हुआ । व्यासजी की कुटिया में सदैव हरिचर्चा हुआ करती थी जिसे गर्भस्थ बालक सुनकर स्मरण कर लेता । इस तरह उस बालक ने गर्भ में ही वेद, स्मृति, पुराण और समस्त मुक्ति-शास्त्रों का अध्ययन कर लिया । वह गर्भस्थ शिशु बातचीत भी करता था ।
महर्षि व्यास और गर्भस्थ शुकदेव संवाद
गर्भस्थ बालक के बहुत बढ़ जाने और प्रसव न होने से माता को बड़ी पीड़ा होने लगी । एक दिन व्यासजी ने आश्चर्यचकित होकर गर्भस्थ बालक से पूछा-‘तू मेरी पत्नी की कोख में घुसा बैठा है, कौन है और बाहर क्यों नहीं आता है ? क्या गर्भिणी स्त्री की हत्या करना चाहता है ?’
गर्भ ने उत्तर दिया-‘मैं राक्षस, पिशाच, देव, मनुष्य, हाथी, घोड़ा, बकरी सब कुछ बन सकता हूँ, क्योंकि मैं चौरासी हजार योनियों में भ्रमण करके आया हूँ; इसलिए मैं यह कैसे बतलाऊँ कि मैं कौन हूँ ? हां, इस समय मैं मनुष्य होकर गर्भ में आया हूँ । मैं इस गर्भ से बाहर नहीं निकलना चाहता क्योंकि इस दु:खपूर्ण संसार में सदा से भटकते हुए अब मैं भवबंधन से छूटने के लिए गर्भ में योगाभ्यास कर रहा हूँ । जब तक मनुष्य गर्भ में रहता है तब तक उसे ज्ञान, वैराग्य और पूर्वजन्मों की स्मृति बनी रहती है । गर्भ से बाहर आते ही भगवान की माया के स्पर्श से ज्ञान और वैराग्य छिप जाते हैं; इसलिए मैं गर्भ में ही रहकर यहीं से सीधे मोक्ष की प्राप्ति करुंगा ।’
व्यासजी ने कहा-‘तुम इस नरकरूप गर्भ से बाहर आ जाओ, नहीं तो तुम्हारी मां मर जाएगी । तुम पर वैष्णवी माया का असर नहीं होगा । मुझे अपना मुखकमल दिखला कर पितृऋण से मुक्त करो ।’
गर्भ ने कहा-‘मुझ पर माया का असर नहीं होगा, इस बात के लिए यदि आप भगवान वासुदेव की जमानत दिला सकें तो मैं बाहर निकल सकता हूँ, अन्यथा नहीं ।’ इस बहाने शुकदेवजी ने जन्म के समय ही भगवान श्रीकृष्ण को अपने पास बुला लिया ।
व्यासजी तुरन्त द्वारका गए और भगवान वासुदेव को अपनी कहानी सुनाई । भक्ताधीन भगवान जमानत देने के लिए तुरन्त व्यासजी के साथ चल दिए और आश्रम में आकर गर्भस्थ बालक से बोले-‘हे बालक ! गर्भ से बाहर निकलने पर मैं तुझे माया-मोह से दूर करने की जिम्मेदारी लेता हूँ, अब तू शीघ्र बाहर आ जा ।’
भगवान श्रीकृष्ण के वचन सुनकर बालक गर्भ से बाहर आकर भगवान व माता-पिता को प्रणाम कर वन की ओर चल दिया । प्रसव होने पर बालक बारह वर्ष का जवान दिखायी पड़ता था । उसके श्यामवर्ण के सुगठित, सुकुमार व सुन्दर शरीर को देखकर व्यासजी मोहित हो गए ।
पुत्र को वन जाते देखकर व्यासजी ने कहा-‘पुत्र घर में रह जिससे मैं तेरा जात-कर्मादि संस्कार कर सकूँ ।’
बालक ने उत्तर दिया-‘अनेक जन्मों में मेरे हजारों संस्कार हो चुके हैं, इसी से मैं संसार-सागर में पड़ा हुआ हूँ ।’
भगवान ने व्यासजी से कहा-‘आपका पुत्र शुक की तरह मधुर बोल रहा है इसलिए पुत्र का नाम ‘शुक’ रखिये । यह मोह-मायारहित शुक आपके घर में नहीं रहेगा, इसे इसकी इच्छानुसार जाने दीजिए । इससे मोह न बढ़ाइए । पुत्रमुख देखते ही आप पितृऋण से मुक्त हो गये हैं ।’ ऐसा कहकर भगवान द्वारका चले गए ।
इसके बाद व्यासजी और शुकदेवजी में बहुत ही ज्ञानवर्धक संवाद हुआ जो मोहग्रस्त सांसारिक प्राणी को कल्याण का मार्ग दिखाने वाला है-
व्यासजी-‘जो पुत्र पिता के वचनों के अनुसार नहीं चलता है, वह नरकगामी होता है ।’
शुकदेवजी-‘आज मैं जैसे आपसे उत्पन्न हुआ हूँ, उसी प्रकार दूसरे जन्मों में आप कभी मुझसे उत्पन्न हो चुके हैं । पिता-पुत्र का नाता यों ही बदला करता है ।’
व्यासजी-‘संस्कार किए हुए मनुष्य ही पहले ब्रह्मचारी, फिर गृहस्थ, फिर वानप्रस्थ और उसके बाद संन्यासी होकर मुक्ति पाते हैं ।’
शुकदेवजी-‘यदि केवल ब्रह्मचर्य से ही मुक्ति होती तो सारे नपुंसक मुक्त हो जाते । गृहस्थ में मुक्ति होती तो सारा संसार ही मुक्त हो जाता । वानप्रस्थियों की मुक्ति होती तो सब पशु क्यों नहीं मुक्त हो जाते ? और यदि धन के त्यागने से ही मुक्ति होती है तो सारे दरिद्रों की सबसे पहले मुक्ति होनी चाहिए थी ।’
व्यासजी-‘वनवास में मनुष्यों को बड़ा कष्ट होता है, वहां सारे देव-पितृ कर्म हो नहीं पाते हैं; इसलिए घर में रहना ही अच्छा है ।’
शुकदेवजी-‘वनवासी मुनियों को समस्त तपों का फल अपने-आप ही मिल जाता है, उनको बुरा संग तो कभी होता ही नहीं है ।’
व्यासजी-‘यमराज के यहां एक ‘पुत्’ नामक घोर नरक है । पुत्रहीन मनुष्य को उसी नरक में जाना पड़ता है; इसलिए संसार में पुत्र होना आवश्यक है ।’
शुकदेवजी-‘यदि पुत्र से ही सबको मुक्ति मिलती हो तो कुत्ते, सुअर, कीट-पतंगों की मुक्ति अवश्य हो जानी चाहिए ।’
व्यासजी-‘इस लोक में पुत्र से पितृऋण, पौत्र देखने से देवऋण, और प्रपौत्र के दर्शन से मनुष्य समस्त ऋणों से मुक्त हो जाता है ।’
शुकदेवजी-‘गीध की तो बहुत बड़ी आयु होती है । वह तो न मालूम कितने पुत्र-पौत्र-प्रपौत्र का मुख देखता है, परन्तु उसकी मुक्ति तो नहीं होती है ।’
श्रीशुकदेवजी समस्त जगत को अपना ही स्वरूप समझते थे, अत: उनकी ओर से वृक्षों ने व्यासजी को बोध दिया-‘महाराज ! आप ज्ञानी हैं और पुत्र के पीछे पड़े हैं । कौन किसका पिता और कौन किसका पुत्र ? वासना पिता बनाती है और वासना ही पुत्र बनाती है । जीव का ईश्वर के साथ सम्बन्ध ही सच्चा है । पिताजी मेरे पीछे नहीं, परमात्मा के पीछे पड़िए ।’
शुकदेवजी वृक्षों द्वारा ऐसा ज्ञान देकर वन में जाकर समाधिस्थ हो गए । वे अब भी हैं और अधिकारी मनुष्यों को दर्शन देकर उपदेश भी करते हैं ।

आज का सुविचार
कर्म एक ऐसा भोजनालय है जहां हमें भोजन आग्रह करने की आवश्यकता नहीं है हमें वही मिलता है जो हमने पकाया है॥
जिनका आज जन्मदिन है उनको हार्दिक शुभकामनाएं बधाई और शुभाशीष
दिनांक 16 को जन्मे व्यक्ति का मूलांक 7 होगा। इस अंक से प्रभावित व्यक्ति अपने आप में कई विशेषता लिए होते हैं। यह अंक वरूण ग्रह से संचालित होता है। आप खुले दिल के व्यक्ति हैं। आपकी प्रवृत्ति जल की तरह होती है। जिस तरह जल अपनी राह स्वयं बना लेता है वैसे ही आप भी तमाम बाधाओं को पार कर अपनी मंजिल पाने में कामयाब होते हैं। आप पैनी नजर के होते हैं। किसी के मन की बात तुरंत समझने की आपमें दक्षता होती है।
शुभ दिनांक : 7, 16, 25
शुभ अंक : 7, 16, 25, 34
शुभ वर्ष : 2025
ईष्टदेव : भगवान शिव तथा विष्णु
शुभ रंग : सफेद, पिंक, जामुनी, मेहरून
जन्मतिथि के अनुसार भविष्यफल :
आपके कार्य में तेजी का वातावरण रहेगा। आपको प्रत्येक कार्य में जुटकर ही सफलता मिलेगी। व्यापार-व्यवसाय की स्थिति उत्तम रहेगी। अधिकारी वर्ग का सहयोग मिलेगा। नौकरीपेशा व्यक्तियों के लिए समय सुखकर रहेगा। नवीन कार्य-योजना शुरू करने से पहले केसर का लंबा तिलक लगाएं व मंदिर में पताका चढ़ाएं।
आज का राशिफल
मेष🐐 (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
आज का दिन आपके लिए लंबे समय से रुके हुए कामों को पूरा करने के लिए रहेगा। कार्यक्षेत्र में आपको कोई बड़ी सफलता हासिल हो सकती है। आप कामों को लेकर आयात-निर्यात कर सकते हैं। संतान को परीक्षा में अच्छी सफलता हासिल होगी। आपके पारिवारिक मामले आपको परेशान करेंगे। आपकी किसी पुराने मित्र से लंबे समय बाद मुलाकात होगी। आपको अपने किसी सहयोगी की कोई बात बुरी लग सकती है।
वृष🐂 (ई, ऊ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
आज का दिन आपके लिए सुख-सुविधाओं में वृद्धि लेकर आने वाला है। आप शौक और मौज की चीजों पर अच्छा खासा धन व्यय करेंगे। प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी। आपको भाइयों की कोई बात बुरी लग सकती है। परिवार में किसी सदस्य के विवाह में यदि देरी हो रही थी, तो उसके लिए आप अपने किसी परिजन की मदद से दूर होगी। माता-पिता के आशीर्वाद से आपको किसी कानूनी मामले में सफलता मिलेगी।
मिथुन👫 (का, की, कू, घ, ङ, छ, के, को, हा)
आज का दिन आपके लिए कुछ नया करने के लिए रहेगा। वैवाहिक जीवन आनंदमय रहेगा। आप कोई निर्णय बहुत ही सोच समझकर लें। आप अपने कामों में कोई बदलाव कर सकते हैं, जो आपकी समस्याओं को बढ़ाएंगे। आपको खानपान में संतुलित भोजन लेना होगा। आपको अपने किसी परिजन की ओर से कोई निराशाजनक सूचना सुनने को मिल सकती हैं। आपको अपने बिजनेस में किसी के साथ पार्टनरशिप सोच समझकर करनी होगी।
कर्क🦀 (ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
आज का दिन आपके लिए किसी रुके हुए काम को पूरा करने के लिए रहेगा। आपके बिजनेस में रुका हुआ काम आपको मिल सकता है। पारिवारिक मामलों को आप घर से बाहर न जाने दें। आप अपने धन को लेकर योजना बनाकर चलेंगे, तो आपके लिए बेहतर रहेगा। आपको किसी की कोई बात बुरी लगने से आपका मन परेशान रहेगा। आपको अपने कामों पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। आपके बॉस आपको कोई जिम्मेदारी दे सकते हैं।
सिंह🦁 (मा, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
आज का दिन आपके लिए लाभदायक रहने वाला है। सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के काम बनेंगे। जीवनसाथी आपको कोई सरप्राइज गिफ्ट लेकर आ सकते हैं। आप नौकरी के किसी काम को लेकर कहीं बाहर जा सकते हैं। आपको प्रमोशन जैसी कोई खुशखबरी सुनने को मिल सकती है। आपको एक साथ कोई काम हाथ लगने से आपकी समस्याएं बढ़ेंगी। घूमने-फिरने के दौरान आपको कोई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होगी। आपका मन किसी बात को लेकर परेशान रहेगा।
कन्या👩 (टो, पा, पी, पू, ष, ण, ठ, पे, पो)
आज का दिन आपके लिए बढ़िया रहने वाला है। आप अपने खर्चों को जरूरत के हिसाब से खर्च करें, तो आपके लिए बेहतर रहेगा। कार्यक्षेत्र में आपको अच्छा मुनाफा मिलेगा। आपको आपकी किसी गलतफहमी से दूर रहना होगा। विदेशो से व्यापार कर रहे लोगों को किसी डील को सोच समझकर फाइनल करना होगा। आपकी इनकम के सोर्स बढ़ेंगे। आपकी कोई प्रिय वस्तु खो गई थी, तो वह भी आपको मिल सकती है। आपको किसी काम को लेकर बेवजह टेंशन हो सकती है।
तुला⚖️ (रा, री, रू, रे, रो, ता, ती, तू, ते)
आज का दिन आपकी इनकम को बढ़ाने वाला रहेगा। आपको काम के सिलसिले में किसी छोटी दूरी की यात्रा पर जाना पड़ सकता है। प्रेम जीवन जी रहे लोग अपने साथी के साथ आनंदमय समय व्यतीत करेंगे। आपकी आय के सोर्स बढ़ेंगे, जो आपको समस्या देंगे। यदि आपको कोई समस्या आ रही थी, तो वह भी दूर होगी। प्रेम जीवन जी रहे लोग अपने साथी से मिलने जा सकते हैं। आपका मन किसी बात को लेकर परेशान रहेगा।
वृश्चिक🦂 (तो, ना, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
आज का दिन आपके लिए सोच समझकर कामों को करने के लिए रहेगा। कार्यक्षेत्र में आपके ऊपर कोई झूठा आरोप लग सकता है। आपको अपनी बात लोगों के सामने स्पष्ट रखनी होगी। आपको कोई शारीरिक समस्या परेशान करेगी। आप अपने बिजनेस को लेकर वरिष्ठ सदस्यों से बातचीत कर सकते हैं। आपके सहयोगी कामों में आपका पूरा सपोर्ट करेंगे। सामाजिक कार्यक्रमों से आपको जुड़ने का मौका मिलेगा।
धनु🏹 (ये, यो, भा, भी, भू, ध, फा, ढा, भे)
आज का दिन आपके लिए आर्थिक दृष्टिकोण से अच्छा रहने वाला है। आपको किसी पैतृक संपत्ति की प्राप्ति हो सकती है। कार्यक्षेत्र में किसी समस्या के कारण आपका मन परेशान रहेगा। परिवार के सदस्यों के साथ आप किसी जरूरी मामले को लेकर बातचीत कर सकते हैं। आपको अपनी सेहत पर पूरा ध्यान देने की आवश्यकता है। जीवनसाथी के साथ आपकी किसी बात को लेकर खटपट हो सकती है। आपको आपका डूबा हुआ धन मिलने से खुशी होगी।
मकर🐊 (भो, जा, जी, खी, खू, खा, खो, गा, गी)
आज का दिन आपके लिए अनुकूल रहने वाला है। आपके विरोधी परेशान करने की कोशिश करेंगे। कोई फैसला के लिए आपको पछतावा हो सकता है। परिवार में किसी सदस्य को नई नौकरी मिलने से माहौल खुशनुमा रहेगा। राजनीति में आप सोच समझकर कदम बढ़ाएं। आप खानपान में अच्छे भोजन का आनंद लेंगे, लेकिन आपने बिजनेस में यदि कोई जोखिम लिया, तो उससे आपको बाद में कोई नुकसान हो सकता है। काम का बोझ आपके ऊपर अधिक रहेगा।
कुंभ🍯 (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा)
आज का दिन आपके लिए सकारात्मक परिणाम लेकर आने वाला है। आपको अपनी मेहनत और लगन से काम करने की आवश्यकता है। आप अपने कामों में कोई बदलाव बहुत ही सोच विचारकर करें। प्रेम और सहयोग की भावना आपके मन में बनी रहेगी। वैवाहिक जीवन में खुशियां रहेगी। आप अपनी किसी समस्या को अपने पिताजी की मदद से सुलझाना बेहतर रहेगा। आप तरक्की की राह पर आगे बढ़ेंगे। किसी से किए हुए वादे को आप समय रहते पूरा करने की कोशिश करें।
मीन🐳 (दी, दू, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
आज का दिन आपके लिए आत्मविश्वास से भरपूर रहने वाला है। आपको समाज में अच्छा नाम कमाने का मौका मिलेगा, लेकिन आपकी तरक्की देखकर आपके विरोधी भी बढ़ सकते हैं। किसी नई नौकरी का आपको कोई ऑफर आ सकता है। आपके कुछ नए प्रयास बेहतर रहेंगे। संतान को तरक्की करते देख आपको खुशी होगी। विद्यार्थियों को बौद्धिक और मानसिक बोझ से छुटकारा मिलेगा। माता-पिता के आशीर्वाद से आपको कोई बड़ी उपलब्धि मिल सकती है।
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