मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड लागू क्यो नहीं हो पा रहा है ?

मजीठिया अवार्ड 2011 मे एप्रोप्रिएट गव्हरन्मेंट द्वारा नोटीफाई हुआ। सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक नही दो-दो बार अवार्ड लागू करने हेतु निर्देश दिए गए हैं। अवार्ड लागू क्यो नही हो पा रहा है ? इसके कारणों को समझने की आवश्यकता है।
कैलकुलेशन की बात हर कोइ करता है परंतु सच्चाई यह है कि कैलकुलेशन कैसे हो यह बात लेबर कमिश्नर हमेशा से छुपाता आया है। डीए कैलकुलेशन हेतु साफ-साफ दिशा निर्देश होने के पश्र्चात् भी लेबर कमिश्र्नर अखवारकर्मियों को गुमराह करता आ रहा है। लेबर कमिश्नर ने अनाप-सनाप ओर्डर करवाकर अखवारकर्मियों को गुमराह किया है।

मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड को लागू करने में कई कारणों से विलंब हो रहा है। यह अवार्ड 2011 में सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया था, और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके कार्यान्वयन के लिए निर्देश दिए हैं ।

मजीठिया अवार्ड को लागू करवाने में कई चुनौतियाँ हैं:

  • कैलकुलेशन में भूल-चूक: कैलकुलेशन में हुए भूल-चूक को रेक्टीफाई करना लेबर कमिश्र्नर का काम है, लेकिन लेबर कमिश्र्नर इस भूल-चूक को “क्वेश्र्चन औन एमाउंट” कह कर मामले को लेबर कोर्ट में रेफर करता रहा है।
  • लेबर कमिश्र्नर की भूमिका: लेबर कमिश्र्नर की भूमिका अवार्ड को लागू करवाने में महत्वपूर्ण है, लेकिन लेबर कमिश्र्नर ने अवार्ड को लागू करवाने में सहयोग नहीं किया है।
  • अखवार कम्पनियों का विरोध: अखवार कम्पनियों ने अवार्ड का विरोध किया है और इसके कार्यान्वयन में बाधा डाली है।
  • कामगारों की एकता की कमी: कामगारों की एकता की कमी भी अवार्ड को लागू करवाने में एक बड़ी चुनौती है। कामगारों को एकजुट होकर अवार्ड को लागू करवाने के लिए संघर्ष करना होगा।

इन चुनौतियों को दूर करने के लिए कामगारों को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा ।
कोई भी कामगार इस बात का विश्र्लेषण करने का श्रम नही करना चाहता कि मजीठिया वेज बोर्ड अवार्ड कानूनी रूप से एक अवार्ड कैसे है ; और किस प्रकार से इस अवार्ड को झुठलाया गया है !

1). मजीठिया अवार्ड को लागू करवाने हेतु कामगारों को स्वयं कानून समझना होगा।
2). कामगारों को एक बार पुनः संगठित होना होगा।
3). कामगारों को यह समझना होगा कि कोई कामगार यदि कुछ बोल रहा है, जो अब तक चल रहे तमाम कार्रवाई से अलग है तो उसे ठीक से , सही तरीके से और अलग नजरिए से देखना होगा।
4). कामगारों को इस मामले पर ध्यान देने हेतु समय भी निकालना होगा।
5). कामगार एक मीटिंग कर लेने के बाद पुनः दूसरे मीटिंग हेतु तत्परता दिखाए ताकि अवार्ड लागू करवाने हेतु समर्पित कामगारों का हौसला बना रहे।
अखवार कम्पनी अपनी असली नाम तक को छुपा रही है। यह भी बहुत गौर करने लायक बात है। मसलन दैनिक भास्कर short name – (डीबी कौर्प )लिखकर , इंडिया टुडे – (लीव्हिंग मीडिया ) समान छद्म नामों से प्रक्रिया में भाग ले रहा है। इनके इन हथकंडो को भी बेनकाब करने की आवश्यकता है। दिव्य भास्कर का कर्मचारी दैनिक भास्कर से अपने को अलग समझ रहा है। इस तरह से लगभग सारे अखवारकर्मियों को गुमराह किया गया है लेबर कमिश्र्नर के मदद से।

डीबी कोर्प अर्थात् दैनिक भास्कर अखवार के मामले में एक आदेश है उस मामले को किस प्रकार गुमराह किया गया है वह ऐसे समझिए कि सबसे पहले यह हाइलाईट किया गया है कि डीबी कोर्प “ अखवार “ से इतर तमाम तरह के धंधे करता है और टेक्सटाईल का धंधा पर विशेष बल दे दिया गया है । इलेक्ट्रौनिक मीडिया इत्यादि धंधे उसने बता कर हाई कोर्ट को गुमराह किया है और इंप्लौयर इंप्लौय रिलेशनशीप का विवाद किया है और लेबर कमिश्नर का निर्गत किया गया रिकवरी सर्टीफिकेट गिर गया है। यही order कितने ही हाई कोर्ट में सर्कुलेट कर तमाम प्रकार के गलत order करवाया गया है। यदि किन्ही अखवारकर्मी को उत्सुकता हो तो उस ओर्डर का अध्ययन कर सकते हैं।
Order बहुत सारे हुए हैं, सभी आर्डर को हम चर्चा मे लेकर विषय वस्तु को समझ सकते हैं। विषय को समझने के बाद ही आप इसकी खमियों को पृथक कर सकेंगे। बीमारी को जाने बिना किया गया चिकित्सा क्या काम करेगा ? लोग समस्या को समझे बिना ही समस्या को सुलझाना चाहे तो कैसे संभव होगा ? एक बार यदि हम एक होकर इस विषय पर चिंतन करके सामूहिक रूप से प्रयास करें तो अवश्य दूध का दूध और पानी का पानी होकर रहेगा !
अभी भी कुछ नही बिगड़ा है , हम एकता बनाकर कार्य करें तो अवश्य सफल होंगे।

हमारे बीच कोई भी कामगार किसी के राय पर अब विश्र्वास नही कर रहा है !

अवार्ड को अवार्ड कहने से छुपाना ही मुख्य कारण है कि यह कोर्ट में अटका हुआ है। कोई कामगार सुप्रीम कोर्ट में नागपुर बेंच के (ऑल इंडिया रिपोर्टर वाला मामला) order को लेकर चला गया है, परंतु उसे यह पता ही नही है कि उक्त order में कहां गलती किया गया है ?
अवार्ड लेबर कोर्ट द्वारा निर्गत होकर आईडी ऐक्ट के सेक्शन 17 ए अंतर्गत नोटीफाई होता है । मजीठिया अवार्ड का वही ग्रेड है यह बात लीव्हींग मीडिया इंडिया (इंडिया टुडे) के एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा कही गई है। अब अवार्ड को लागू करवाना सरकार का काम है। कैलकुलेशन में बहुत प्रकार के भूल-चूक हो सकते हैं । कैलकुलेशन में हुए भूल-चूक को रेक्टीफाई करना लेबर कमिश्र्नर का काम है। किंतु लेबर कमिश्र्नर इस भूल-चूक को “क्वेश्र्चन औन एमाउंट “ कह कर मामले को लेबर कोर्ट में रेफर करता रहा। सालो बाद नागपुर बेंच में यह फैसला सुनाया गया कि रेफर नही हो सकता है। परंतु कारण को लेकर यहां भी उलझन पैदा कर दिया गया है। और उस उलझन के परिनामस्वरूप कई कामगार सुप्रीम कोर्ट चले गये हैं। कोई भी कामगार किसी पहलू को समझने की चेष्टा करे, कुछ तर्क-वितर्क करे, किसी के कहे गए बातों पर गौर करे कि क्या कहा गया है। परंतु यहां क्या कहा गया है यह कोई भी नही समझने की चेष्टा कर रहा है, कौन कह रहा है इसी बात को लोग मान ले रहे हैं , कहने बाला कानूनची व्यक्ति हो तो उन्हे उसी कानूनची की बातें सौ आने सच मालूम होती है। और यहीं पर लोग गुमराह हो रहे हैं। आप सभी बुद्धि से कार्य करने बाले लोग है, आप क्यो विषय को समझने की चेष्टा स्वयं नही कर रहे हैं ?

मुख्य बात यह है कि मजीठिया अवार्ड पूरी तरह से निर्विवाद है। कोर्ट में चलने लायक कोई भी विवाद नही पैदा हो सकता। कैलकुलेशन अमाउंट का विवाद कोइ ऐसा विवाद नही होता कि ऐडजुडीकेशन हो, यह बात भी लीव्हींग मीडिया इंडिया लिमिटेड के जजमेंट मे कह दिया गया गए हैं। परंतु लेबर कमिश्र्नर लीव्हिंग मीडिया के इस जजमेंट पर भी कोई चर्चा नही करने देता है। जिस अवार्ड का लाभ अखवार के कर्मचारियों को मिलना था उस अवार्ड को लेबर कमिश्र्नर ने बेच खाया है। हमने लेबर कमिश्र्नर के खिलाफ कौंटेंप्ट औफ कोर्ट फाईल किया हुआ है। अब तक का पहला मामला हमने चालू किया है। अभी तक किसी ने भी स्टेट के खिलाफ अवमानना नही चलाया है। हम हाई कोर्ट में साबित करेंगे कि लेबर कमिश्र्नर के उपर अवमानना क्यों चलना चाहिए ?
हम अभी बांद्रा लेबर कमिश्र्नर (महाराष्ट्र लेबर डिपार्टमेंट का हेड औफिस है। ) के तरफ से एक निर्णय का भी प्रतीक्षा कर रहे हैं। इस मामले की सुनवाई September में ही पूरी हो चुकी है। और अभी तक निर्णय से अवगत नही करवाया गया है। पूछने पर लेबर कमिश्र्नर कार्यालय उत्तर दे रहा है कि यह मामला बहुत क्रिटिकल है इसीलिए हमे देरी हो रही है। अब समझ सकते हैं कि हमारे द्वारा बताए गए और सुझाए गए बिन्दुओं के मद्देनजर लेबर कमिश्नर को मामला क्रिटिकल लग रहा है। इसीलिए आवश्यक यह है कि इस विषय को ठीक से समझें और सभी लोग एक प्रकार से कार्यवाई करें। सभी लोग अलग-अलग वकील नहीं रखें। एक ही कानून है तो एक ही टीम इसे हैंडल करे पूरे देश में तभी हम सफल होंगे।
धन्यवाद

महामजीठिया मिशन लीगल एवं टेक्नीकल टीम।
नमो नारायण सैनी
PRO (National)
Mob:- 9784495950

Email: editor@gramintimes.in

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